kubz-e-gum
Tuesday 31 July 2012
Monday 30 July 2012
ये बेचारे... कब्ज के मारे
‘सुबह उठते ही गिलास पर गिलास पानी के चढ़ाते हैं, सारे हथकंडे आजमाते हैं, लेकिन साहब का प्रेशर है कि बनने का नाम ही नहीं लेता। कभी उकड़ू बनकर अखबार पढ़ते हैं तो कभी छत के चक्कर लगाते हैं। फिर चाय का कप खत्म करके मन ही मन बुदबुदाते हैं, आठ बजे गए अभी तक नहीं आई है...आज भी आॅफिस के लिए लेट हो जाऊंगा..।’
साहब की स्थिति पर आप हंसिए मत क्योंकि जिस स्थिति से आजकल वे दो चार हो रहे हैं, किसी न किसी समय आप भी उससे जूझे होंगे। यह समस्या है कब्ज की। बहुत ही विकराल समस्या है भाई। महंगाई डायन तो फिर भी ऊपर-नीचे होती रहती है लेकिन कब्ज की स्पीड जिस तेजी से बढ़ रही है उसने आम लोगों का खाना खराब कर दिया है। न रात को नींद आती है, न दिन को चैन...। जिस दिन पेट साफ नहीं होता, उस दिन चौबीस घंटे मुंह पर 12 बजे रहते हैं। सारा दिन झल्लाते हैं, बात-बेबात चिल्लाते हैं। ऐसे लगता है मानो घर पर बीवी की डांट खाई है और आॅफिस में बॉस की...लेकिन कोई क्या जाने कि ये हालत कब्ज ने बनाई है। हमारा शहर भी इस प्रॉब्लम में पीछे कहां रहने वाला है, लाखों की तादाद में लोग इस रोग को भोग रहे हैं। दिन में पपीते के कई दौने साफ करने के बावजूद भी सुबह प्रेशर बनने में घंटों लग जाते हैं। आप इसे मजे की बात कहिए या दु:खद पहलू, कई पिताओं ने अपनी संतानों को यह बीमारी सौगात में दी है। फलत: सुबह-सुबह बाप-बेटे दोनों इस बात के लिए मशक्कत करते हैं कि किसकी पहले उतरेगी।
डा. पवन पारीक कहते हैं, वर्तमान में उनके पास अगर दस मरीज आते हैं तो उनमें से छह-सात मरीज कब्ज के ही होते हैं। वे कहते हैं कि यह समस्या अब बहुत खतरनाक हो गई है। लोग स्पाइसी फूड के दीवाने हो गए हैं। यह फूड उनकी आंतों में इन्फेक्शन पैदा कर देता है जिससे आंतों के मूवमेंट पर फर्क पड़ता है। खान-पान के अलावा लोग मानसिक तौर पर भी काफी डिस्टर्ब रहते हैं। उन्हें सुकून नहीं है, फलत: मेंटल टेंशन भी आंतों पर असर डालती है और इससे भी कब्ज की शिकायत हो जाती है। जब कब्ज लगातार बना रहता है तो पाइल्स की समस्या होने लगती है। उम्रदराज लोगों के अलावा किशोरों और युवाओं में भी यह समस्या काफी देखने को मिल रही है। कई युवा तो ऐसे हैं जो रात में जब तक कायमचूर्ण और ईसबगोल का सेवन नहीं करते, वे सुबह प्रेशर बनाते-बनाते थक जाते हैं लेकिन सारे प्रयास निरर्थक जाते है। इस समस्या से ग्रस्त कमला नगर निवासी एक बैंक अधिकारी कहते हैं कि उनके पिताजी भी कब्ज से पीड़ित थे। वे खुद भी इसके शिकार हैं, साथ ही उनका बेटा भी कब्ज का रोगी बन गया है। वे चाहें कितनी भी जल्दी उठ जाएं लेकिन प्रेशर जल्दी न बन पाने के कारण सुबह कई घंटे बर्बाद हो जाते हैं। कब्ज के ही शिकार एक अन्य महाशय का कहना है कि वे रोज रात को मुनक्के डालकर गर्म दूध पीते हैं। सुबह कई गिलास पानी के पी जाते हैं। टहलते भी हैं लेकिन फिर भी पेट साफ नहीं होता। वे डॉक्टर की भी दवा खा चुके हैं लेकिन दवा छोड़ने के बाद स्थिति जस की तस हो जाती है। शाहगंज निवासी योगेश की हालत भी कुछ ऐसी ही है। तीन साल पहले तक उन्हें इस बात को लेकर भ्रम हो गया था कि वे जिस दिन पपीता नहीं खाएंगे, अगले दिन उनका पेट साफ नहीं होगा। अत: चाहें दुनिया बदल जाए, लेकिन उनका पपीता खाने का क्रम नहीं टूटता था। उन्होंने कई माह तक लगातार पपीता खाया, साथ ही डॉक्टर की दवाओं का भी सेवन किया...लेकिन कब्ज ने भी कसम खा रही थी..तू डाल-डाल, मैं पात-पात। खा लो कुछ भी सनम, न छोड़ेंगे तेरा साथ हम। हारकर उन्होंने कब्ज को अपने कर्मों का फल समझकर भाग्य के भरोसे छोड़ दिया। कब्ज को कई साल से झेल रहे सोनू को दिन में कई बार टॉयलेट जाना पड़ता है। वे कहते हैं कि उनकी याद में ऐसा कोई दिन नहीं जब एक बार में उनका पेट साफ हो गया हो...। कई बार तो दिन में चार-चार बार टॉयलेट जाते हैं लेकिन फिर भी पेट साफ नहीं होता।
अब तक खा गए 80 किलो ईसबगोल
यूं तो शहर में कब्ज के मारे बहुतेरे हैं लेकिन बल्केश्वर निवासी एक शख्स की बात ही जुदा है। जनाब पिछले पंद्रह साल से ईसबगोल का सेवन कर रहे हैं और अब तक 80 किलो ईसबगोल खा चुके हैं। इन महाशय का कहना है वे दिन में खाना खाना भले ही भूल जाएं लेकिन ईसबगोल खाना नहीं भूलते। उन्हें कब्ज के चलते 15 साल पहले पाइल्स की समस्या हुई थी, तब से ही वे ईसबगोल खा रहे हैं। उनका कहना है कि अगर वे ईसबगोल की डिब्बों को इकट्ठा कर लेते तो उनसे अब तक एक मेटाडोर भर गया होता। इसी तरह एक अन्य जनाब पिछले तीन महीने में करीब डेढ़ कुंतल पपीता खा गए हैं। उन्हें किसी से सलाह दी थी कि अगर पेट साफ रखना है तो...‘पपीता इज द बेस्ट’...फिर क्या था, उन्होंने पपीता खाने का नंबर ऐसा लगाया वे अब दिन में एक किलो से ज्यादा पपीता खा लेते हैं। खाना कम खाता हैं लेकिन पपीता ज्यादा। उनका कहना है कि पपीता खाने का अंजाम भी उन्हें दिख रहा है। जिस समस्या से वे सालों से पीड़ित थे, पपीता खाते ही वह छूमंतर हो गई।
Subscribe to:
Posts (Atom)